लघु उद्योग भारती ने आयकर अधिनियम की धारा 43बी (एच) पर पुनर्विचार के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री को भेजा ज्ञापन, पारस्परिक सहमति से भुगतान शर्तों में लचीलेपन के प्रावधान शामिल किए जाए- अरविंद धूमल

हस्तशिल्प निर्यात के व्यापार में, विदेशी खरीदार आमतौर पर मामले-दर-मामले के आधार पर 60 से 120 दिनों की क्रेडिट अवधि की मांग करते हैं:- उपाध्यक्ष विक्रान्त शर्मा

जालंधर, 14 फरवरी (टिंकु पंडित):- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एम एस एम ई) के सबसे बड़े राष्ट्रव्यापी संगठन लघु उद्योग भारती ने 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी आयकर अधिनियम, 1961 के तहत धारा 43 बी (एच) के वर्तमान कार्यान्वयन पर पुनर्विचार के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन को एक ज्ञापन भेजा है। जिसमें विभिन्न सुझाव दिए है ताकि इसका अधिकाधिक लाभ मिल सके और देश की आर्थिकता पर भी कोई दुष्प्रभाव ना हो। इस संबंध में जानकारी देते हुए लघु उद्योग भारती पजांब के उपाध्यक्ष विक्रान्त शर्मा ने बताया कि अखिल भारतीय अध्यक्ष घनश्याम ओझा, उपाध्यक्ष एडवोकेट अरविंद धूमल, महासचिव ओम प्रकाश गुप्ता द्वारा भेजे गए ज्ञापन में उपरोक्त प्रावधान के कारण, व्यवसाय सूक्ष्म और लघु उद्यमों से बड़े उद्यमों की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं, जिससे सूक्ष्म और लघु इकाइयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, इसलिए इसे एक वर्ष की अवधि के बाद एम एस एम ई के लिए लागू किया जाए। एक मजबूत, सहायक वातावरण को बढ़ावा देने का सामूहिक लक्ष्य केवल सहयोगात्मक प्रयासों और इन उद्यमों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए विचारशील समायोजन के साथ, धारा 43बी(एच) उन व्यवसायों पर अनावश्यक बोझ डाले बिना भी अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है।


उन्होंने कहा कि हस्तशिल्प निर्यात के व्यापार में, विदेशी खरीदार आमतौर पर मामले-दर-मामले के आधार पर 60 से 120 दिनों की क्रेडिट अवधि की मांग करते हैं। इसके अलावा, भारतीय रिज़र्व बैंक निर्यात की तिथि से 9 महीने के भीतर निर्यात आय की वसूली की भी अनुमति देता है। दिए गए परिदृश्य में, 15 से 45 दिनों के भीतर आवक आपूर्ति का भुगतान करना उद्योग के लिए एक वास्तविक कठिनाई होगी क्योंकि विदेशी भुगतान कार्यक्रम विदेशी खरीदारों के साथ पूर्वनिर्धारित हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस युग में इसे बदला नहीं जा सकता है, जिसे इसके तहत रखा जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि पारस्परिक सहमति से भुगतान शर्तों में लचीलेपन के प्रावधान शामिल किए जाए।


उक्त प्रावधानों को सार्वजनिक उपक्रम तथा 250 करोड़ रुपये से ऊपर के बड़े उद्योगों, सरकारी संस्थाओं और व्यवसाय/कॉर्पोरेट घरानों , व्यापारियों सहित सभी एम एस एम ई पर लागू होना चाहिए इसके अतिरिक्त पारस्परिक सहमति से भुगतान शर्तों में लचीलेपन के प्रावधान शामिल किए जाने चाहिए।

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